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- गोरख पांडेय
मरना आसान है, कठिन है जीना
कठिन है जीना कि एक मौत है भूख
जो कल-कारखानों से लेकर हरे-भरे मैदानों तक
अजगर की तरह पसरी है
दूसरी मौत है गुलामी
जिसे कायम रखने के लिए
पूरा का पूरा कारखाना है और तोपची है
सब कुछ को अपने अछोर अंधेरे के गाढ़े पर्दे में छिपाए
जो व्यवस्था कहलाती है
और फ़िर वह मौत तो है ही
जो कंगाल मुल्क में बार-बार महामारी बन जाती है
मरना आसान है, जीना है कठिन
लेकिन इस अछोर अंधेरे के गाढ़े पर्दे को
चीरते हुए तुम आते हो पैरों में सदा चप्पलें डाले
ढीले और चुस्त पाजामे में
माथे पर बल और निगाहों में चुनौती लिए
तुम आते हो, रोती हुई दुलहिनों के चुप कराते हो
सन्नाटा तोड़ने के लिए
काठ की घंटियों से कहते हो – बजो
जहां जाकर आदमी आसानी से खो जाता है
उस शहर से अपने गांव की ओर लौटते हो
और उस कच्ची सड़क की तलाश में भटकते हुए
जो जड़ों की ओर जाती है, तुम मौत को पहचानते हो
भूख और गुलामी के अछोर अंधेरे में फैली हुई
आदमी की और देश की, यानी हर वेश की
मौत को पहचानते हो
अब तुम कुआनो नदी के किनारे हो
जिसमें बाढ़ आ गई है
और सब कुछ डूब रहा है
मगर बाढ़ और कीचड़ का इतिहास पार करते हुए
अब तुम उस ज़मीन पर आ गए हो
जहां से जीवन के सोते फूटते हैं
जहां पत्थरों की छाती पर उग आती है अक्षत धूप
जहां से रोशनी की कोंपलें निकलती हैं
तुम आते हो अपने लोगों के पास
फटेहाल किसानों और मज़दूरों के पास
तुम अपने गांव लौटते हो, नक्सलबाड़ी
जो तुम्हारी तरह हम सबका गांव है
लुटी हुई मगर जो लूट का विरोध करने में जुटी हुई
हम सबकी बस्ती है
यहां तुम्हारे और सबके चेहरे एक हो गए हैं
और तुम अंधेरे पर हमला शुरू करते हो
दोस्तों को पुकारते
और सिर्फ़ शब्दों से दुश्मनों के छक्के छुड़ाते
आगे बढ़ते हो
भेड़ियों के खिलाफ़ जलाते हो मशाल
और मौत के खिलाफ़ अगली रणनीति तैयार करने में
शामिल होते हो, तुम हमारे बीच होते हो
अपने लोगों, अपनी लय, अपने संकल्प
और अपनी ताल के बीच होते हो
कि अचानक नहीं होते हो, हम सकते में आ जाते हैं
हमें छोड़ कर तुम ज़मीन हवा जल और रोशनी में मिल गए हो
हमें सदमा है कि अभी तो तुम्हें यहां होना था
हज़ार संभावनाओं के साथ, रोशनी और आज़ादी की
ख़ूबसूरत कविताओं और गीतों के साथ
मेहनती मगर सताए हुए लोगों की उम्मीदों,
सपनों और लड़ाइयों के साथ
तुम वहां से बहुत आगे निकल गए थे
जहां से चले थे, मगर तुम्हें अभी और आगे जाना था
अभी कल ही तो नागभूषण पटनायक से मिलना था
और मौत के खिलाफ़ उनकी लड़ाई में शामिल होना था
करने थे अभी सुख-दुख के हज़ार चरचे
घटनाओं को अपने विवेक के चरखे पर कातना था
बच्चों में बांटना था नए विचारों का पराग
पीड़ित लोगों में विद्रोह का राग बांटना था
लेकिन तुम नहीं हो
हमने अपना एक सेनापति खो दिया है
हमारी एक मशाल बुझ गई है
हमारे गीतों की एक प्यारी कड़ी टूट गई है
एक गहरे सदमे में तुम्हारी यादों से घिरे
हम यहां खड़े हैं
जहां दूर से आती हुई एक धीमी ललकार
सुनाई पड़ रही है
आगे बढ़ो दोस्तों, आख़िर इस तरह कैसे चल सकता है?
इतनी भूख है इतनी गुलामी है इतनी मौत है
जीवन को चारों ओर दबोचती इतनी मौत
आख़िर इस तरह कैसे चल सकता है?
दोस्तों, आगे बढ़ो कि यह अछोर अंधेरा हट जाए
कि ज़िंदगी जीते, मौत डर कर सामने न आ पाए
और कभी आए तो तुम्हारा आदेश लेकर आए
गरज यह कि जीना आसान हो
मरना कठिन हो जाए।