Saturday 21 January 2017

पुस्तक समीक्षा : वहाँ पानी नहीं है : दर्द को जुबान देती कविताएँ- वीणा भाटिया





‘वहाँ पानी नहीं है’ दिविक रमेश का नवीनतम कविता-संग्रह है। इसके पूर्व इनके नौ कविता-संग्रह आ चुके हैं। ‘गेहूँ घर आया है’ इनकी चुनी हुई कविताओं का प्रतिनिधि संग्रह है। गत वर्ष ‘माँ गाँव में है’ संग्रह आया और बहुचर्चित हुआ। प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह ने दिविक रमेश को वृहत्तर सरोकार का कवि बताते हुए लिखा है कि लेखन के क्षेत्र में वे अभी भी एक युवा की तरह ही सक्रिय हैं। इनकी कविताओं के बारे में शमशेर बहादुर सिंह ने लिखा है कि ये उस गहरी वास्तविक चिंता को व्यक्त करती हैं, जिसका संबंध मानव-मात्र के जीने-मरने से है। त्रिलोचन ने हमेशा इन्हें जन-जीवन से जुड़ा लोकवादी कवि माना। इन्होंने पिटे-पिटाए ढर्रे पर रचना नहीं की, हमेशा काव्य में नये प्रयोग किए और हिन्दी की उस प्रगतिशील जातीय चेतना को आगे बढ़ाया, जिसके वाहक निराला, नागार्जुन, त्रिलोचन, केदार, मुक्तिबोध और शमशेर रहे हैं।
कविता संग्रह ‘वहाँ पानी नहीं है’ को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि इसमें शामिल कविताएँ कवि की दशकों की काव्य-यात्रा का एक नया ही पड़ाव है, जहां हिन्दी कविता अंतर्वस्तु और रूप-विधान, दोनों ही दृष्टि से लोक में समाहित हो गई है। संग्रह में कुल चौंसठ कविताएँ हैं। हर कविता अपने कथ्य, संवेदना और शिल्प में भिन्न है। इन कविताओं को पढ़ते हुए लगता है कि कवि का लोगों से, पूरे परिवेश और प्रकृति से बहुत ही गहरा और आत्मीय रिश्ता है। कवि अपनी जानी-पहचानी दुनिया में विचरता है और संवाद करता है, वह संवेदना के अति सूक्ष्म स्तर पर अपना सरोकार बनाता है। संग्रह में शामिल कविताएँ पहले की कविताओं से इस रूप में भिन्न हैं कि इनमें काव्य-संवेदना और कला का चरमोत्कर्ष दिखाई देता है। एक खास बात है कि दिविक रमेश की इधर की कविताओं में माँ बार-बार आती है। पिछले साल जो संग्रह आया, उसका शीर्षक ही है ‘माँ गाँव में है’। माँ के प्रति यह विशेष लगाव और आकर्षण निश्चय ही इस समाज में माँ की बदलती जा रही स्थिति को इंगित करता है। संग्रह की पहली ही कविता है – माँ के पंख नहीं होते। “माँ के पंख नहीं होते / कुतर देते हैं उन्हें / होते ही पैदा / खुद उसी के बच्चे। माँ के पंख नहीं होते।” यह उस माँ की कविता है जो पिटती थी और जब-जब पिटती थी माँ…लगभग गाती और रोती थी माँ। माँ को लेकर हिन्दी में न जाने कितनी कविताएँ लिखी गई होंगी, पर यह माँ पर ऐसी कविता है जो यथार्थ है और ऐसी विडम्बना को सामने लाती है जो इस अति आधुनिक समाज का नंगा कड़वा सच है। दूसरी कविता है ‘आवाज आग भी तो हो सकती है’। किस सांकेतिकता के साथ कहा है कवि ने – ‘आवाज आग भी तो हो सकती है/ भले ही वह/ चूल्हे ही की क्यों न हो, ख़ामोश’। ‘तू तो है न मेरे पास’ कविता में फिर माँ है। ‘सोचता हूँ क्या था कारण -/ माँ को ही नहीं लेना आया सपना / या सपने की ही नहीं थी पहुँच माँ तक।’ इस विडम्बनात्मक सच को कवि जब कविता में सामने लाता है तो जाहिर है, इसकी रचना-प्रक्रिया बहुत ही दर्द भरी रही होगी। सूक्ष्म संवेदनाओं की बुनावट वाली कई कविताएँ इस संग्रह में हैं, वहीं राजनीतिक पतनशीलता पर बहुत ही सूक्ष्म प्रहार करती और इतिहास के सवालों से टकराती कविताएँ भी हैं। संग्रह की प्रतिनिधि कविता ‘वहाँ पानी नहीं है’ एक ऐसी कविता है जिसमें आज के समग्र यथार्थ का ही उद्भेदन हुआ है। यह कविता शोषण पर आधारित समाज-व्यवस्था पर ऐसी गहरी चोट करती है और जो सवाल करती है, वह मर्मभेदी है। यद्यपि पानी पर बहुत से कवियों ने कविताएँ लिखी हैं। रघुवीर सहाय की कविता ‘पानी पानी’ तो बहुचर्चित रही है। पर ‘वहाँ पानी नहीं है’ हिन्दी कविता की एक नई उपलब्धि है। निश्चय ही, यह युग सत्य को सामने लाने वाली कविता है। इसका पहला और अंतिम अंश उद्धृत करना आवश्यक लग रहा है।
“वहाँ पानी नहीं है।”
सुन कर या पढ़ कर
क्यों नहीं उठता सवाल
कि वहाँ पानी क्यों नहीं है।

“वहाँ पानी नहीं है।”
सुन कर या पढ़ कर
अगर कोई हँस रहा है
तो वह है इक्कीसवीं सदी।
इस शुरुआत और अंत के बीच जिस विडम्बना को प्रस्तुत किया गया है, उसका बोध तो पूरी कविता को पढ़ने के बाद ही हो सकता है। निस्संदेह यह कविता हिन्दी की श्रेष्ठ कविताओं में एक है। ‘उनका दर्द-मेरी जुबान’ भी गहरी त्रासदी को सामने लाने वाली कविता है। संग्रह में कुछ बहुत ही कोमल संवेदनाओं की भी कविताएँ है – प्रेम कविताएँ, पर उनका फ़लक बहुत ही विस्तृत है। ‘शब्द भर होता प्यार’, ‘तुम्हारी नाव के लिए’, ‘करना प्रतीक्षा’, ‘सबसे निजी और खूबसूरत’, ‘बस बजता रहूँगा’, ‘अपने पक्षी की तलाश में’ बहुत ही सघन संवेदना और अनुभूतियों की कविताएँ हैं। ‘प्रियवर का फोन’ में साहित्य की राजनीति पर प्रहार है। ऐसे तो संग्रह में शामिल सभी कविताएँ उल्लेखनीय हैं, पर ‘जिसे चाहता हूँ भाषा में’ कविता का जिक्र जरूरी है। यह गहन अर्थबोध की कविता है और बहुआयामी है।
कहा जा सकता है कि दिविक रमेश के इस संग्रह में जो कविताएँ शामिल हैं, वो कथ्य, रूप-विधान, शिल्प और अर्थबोध की व्यापकता की दृष्टि से हिन्दी साहित्य की उपलब्धि हैं। दिविक रमेश कविताओं में जिस तरह शब्दों को बरतते हैं, उससे एक सांगीतिक रचना भी होती है। उनकी कविताओं में जो संगीत-तत्व है, उसे इस संग्रह को पढ़ते हुए महसूस किया जा सकता है। उनकी कविताएँ हृदय में संगीत-ध्वनियों की तरह बजने वाली हैं।

पुस्तक – वहाँ पानी नहीं है (कविता संग्रह), दिविक रमेश
प्रकाशक – बोधि प्रकाशन, जयपुर
प्रथम संस्करण – 2016
मूल्य – 125 रुपए
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