Monday 22 May 2017

फिल्म रिव्यू : शबाना नहीं तापसी पन्नू है - वीणा भाटिया


बॉलीवुड में फिल्मों का सीक्वल बनाने का ट्रेन्ड रहा है, पर ‘नाम शबाना’ को अक्षय कुमार की फिल्म ‘बेबी’ का प्रीक्वल कहा जा रहा है, यानी इस फिल्म की कहानी ‘बेबी’ के पहले की है।

अपनी तरह की एक अलग ही फिल्म है‘नाम शबाना’ ।

यह पूरी तरह से तापसी पन्नू की फिल्म है। ‘बेबी’ में तापसी पन्नू का किरदार कलाइमैक्स के अंतिम 20 मिनट के दृश्यों में था, पर इस फिल्म में अक्षय कुमार का किरदार ही 20 मिनटों में मानो सिमट कर रह गया है।

ऐसा लगता है कि पुरुष केन्द्रित समाज और सिनेमा में अब कुछ महिलाएँ सेंध मार रही हैं और सेंध मारने के नियम को भी तोड़ रही हैं। सेंध मारने के प्रशिक्षण के समय सिखाया जाता था कि सेंध मारकर पहले पैर भीतर डालना चाहिए, क्योंकि सिर डालने पर घर का कोई जागा हुआ सदस्य बाल पकड़कर भीतर खींच सकता है और पकड़े जा सकते हैं।

वीणा भाटियामनोज बसु के उपन्यास ‘रात के मेहमान’ में सेंध मारने की विधा पर यथेष्ट प्रकाश डाला गया है, परन्तु उस क़िताब में यह नहीं लिखा है कि अगर व्यवस्था ही सेंध मारे तो क्या करना है? वह हमारे ‘अच्छे दिनों’ की किताब है।

तापसी पन्नू, कंगना रनोट, स्वरा भास्कर जैसी अभिनेत्रियों को दीपिका पादुकोण या प्रियंका चोपड़ा की तरह करोड़ों रुपए का मेहनताना नहीं मिलता, परन्तु इनकी प्रतिभा से सिनेमा का परदा खूब रौशन हो रहा है।

ढाई घंटे की इस फिल्म में जो बीस मिनट तापसी पन्नू परदे पर नहीं होती हैं, वे काटे नहीं कटते। उनके चुम्बकीय व्यक्तित्व का लाभ भव्य बजट की फिल्म बनाने वाले संभवतः इसलिए नहीं लेते कि वे अपने अभिनय से नायक को बौना साबित कर सकती हैं।

पटकथा लेखक व फिल्मकार ने हमें ‘वेडनसडे’ में आश्चर्यचकित किया था और ‘बुधवार’ से शुरू होकर वे ‘इतवार’ तक पहुँच गए हैं।

थ्रिलर विधा दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान पेरिस में प्रारंभ हुई, जब नाज़ी कब्ज़े में रहते हुए फ्रांस में देशप्रेम व मानवीय मूल्यों वाली फिल्में थ्रिलर की तरह बनाई जाती थीं। थ्रिलर विधा में हर किस्म के दर्शक की रुचि होती है। उनका सनसनीखेज स्वरूप दर्शकों को बांधे रखता है।

इस फिल्म की बुनावट और कसावट कुछ ऐसी है कि इसमें मध्यान्तर का व्यवधान खल जाता है। कोई अनावश्यक दृश्य नहीं है और संवाद इतने प्रभावोत्पादक हैं कि तालियां बजाने से आप स्वयं को रोक नहीं पाते। मसलन एक प्रशिक्षक कहता है कि मरने के लिए तैयार हो तो शागिर्द व्यंग्य से कहती हैं,

“सर, आप इतने मोटिवेशनल कैसे हैं।”

सभी देशों के अपने गुप्तचर विभाग होते हैं। देश के भीतर गुप्तचरी करने से अधिक जोखिम का काम शत्रु देश में या उसके खिलाफ किसी अन्य देश में काम करना है। सलमान खान अभिनीत ‘टाइगर’ में जो काम पुरुष करते हैं, वही काम इस फिल्म में एक औरत करती है। दूसरे विश्वयुद्ध के समय माताहारी नामक एक विख्यात महिला गुप्तचरी के शिखर पर पहुंची थी। 

इस फिल्म की नायिका ने अपने बचपन में अपने शराबी पिता को मार दिया था, क्योंकि वह उसकी मां को बिना किसी वजह के रोज मारता था। इसका प्रभाव उसके पूरे जीवन पर पड़ता है और वह अपने प्रेमी की सहायता से उस प्रभाव से मुक्त होने का प्रयास करती है तो कुछ मदांध राजनेता के सुपुत्र उसके प्रेमी को मार देते हैं। ये त्रासद घटनाएं उसके दिल में पिघला इस्पात भर देती हैं और वह चलता-फिरता बम बन जाती है।

तापसी पन्नू ने अपने अभिनय से उन क्षणों को जीवंत कर दिया है, जब टास्क फोर्स चीफ रणबीर (मनोज बाजपेयी) की मदद से शबाना अपने प्रेमी के कातिल को उसके अंजाम तक पहुंचाती है।

शबाना टास्क फोर्स का हिस्सा बन जाती है। उसे एक खास मिशन के लिए ट्रेन्ड करने के बाद मलेशिया भेजा जाता है, जहां उसका सामना दुनिया के कई आतंकी संगठनों को खतरनाक हथियारों की सप्लाई करने वाले टोनी उर्फ मिखाइल (पृथ्वीराज सुकुमारन) से होता है। यहां शबाना की मदद के लिए टास्क फोर्स का जांबाज अफसर अजय (अक्षय कुमार) और शुक्ला जी (अनुपम खेर) भी हैं।

शबाना की चाल से ही उसके चरित्र का यह इस्पात नज़र आता है। फिल्म में उनके लिए पोशाक भी बड़ी सावधानी से चुनी गई है। अब तापसी पन्नू मांडेस्टी ब्लेज़ के पात्र को अभिनीत करने के लिए पूरी तरह तैयार है। उसकी एक झलक ही उसके फौलादी इरादों का परिचय देती है।

इस थ्रिलर में गुप्तचर विभाग के आला अफ़सर को अन्य देश में खतरों से भरा कारनामा करने का आदेश देना है और नियमानुसार उसे उसके लिए अपने मंत्री से आज्ञा लेनी है। वह मंत्री के सचिव को फोन करता है और अपनी आदत के अनुसार वह कहता है कि मंत्री जी व्यस्त है और कोई अत्यंत महत्वपूर्ण बात है तो वह मंत्री जी से संपर्क करा सकता है। वह अफ़सर अपने मंत्री के निकम्मेपन को जानता है और कह देता है कि कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है, लेकिन अगले ही क्षण अपने गुप्तचर को आदेश देता है कि दुश्मन देश के गुप्तचर के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। उसने आवश्यक आदेश व अनुमति प्राप्त कर ली है। यह दृश्य हमारे मंत्रियों की जहालत व निकम्मेपन को उजागर करता है। कई बार ऐसा लगता है कि जाहिल मंत्रियों के बिना भी देश का काम चल सकता है और महत्वपूर्ण निर्णय लिए जा सकते हैं।

इस फिल्म के खलनायक का व्यक्तित्व प्रभावशाली है। लेकिन उसका प्रस्तुतिकरण सामान्य मनुष्य की तरह किया गया है और वह प्राण, अमजद खान या अमरीश पुरी से बिल्कुल जुदा सामान्य व्यक्ति लगता है। प्रायः खलनायक के परदे पर आते ही पार्श्व संगीत उसकी मौजूदगी को रेखांकित करता है। यह फिल्म बड़े सधे ढंग से बनाई गई है। अक्षय कुमार ने यह जानते हुए यह फिल्म स्वीकार की कि वे फिल्म के आधे से भी कम भाग में परदे पर नज़र आएंगे। यह पूरी तरह से तापसी पन्नू की फिल्म है। निर्देशक शिवम नायर ने तापसी के किरदार पर खूब मेहनत की है। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि फिल्म ‘पिंक’ के बाद तापसी पन्नू ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि अपनी बेजोड़ अभिनय प्रतिभा के दम पर वह अकेले  फिल्म को सफलता दिला सकती हैं।

कलाकार : तापसी पन्नू, अक्षय कुमार, मनोज बाजपेयी

निर्देशक : शिवम नायर